इस पोस्ट में (Ligend kise kahte hai) कक्षा बारहवीं बोर्ड परीक्षा में पूछे जाने वाले रसायन विज्ञान के अति महत्वपूर्ण प्रश्न बताए गए हैं जो आपकी परीक्षा के लिए बहुत ही अधिक उपयोगी साबित हो सकते हैं विद्यार्थियों से यह अनुरोध है कि विद्यार्थी इस को भली-भांति याद कर लें ताकि वे अपनी परीक्षा में अच्छे मार्क प्राप्त कर सके।
यहाँ पर बहुविकल्पीय प्रश्न दिये जा रहे हैं जरुर देखें
प्रश्न 1. – [Co(en)2 Cl2]Cl में Co की समन्वय संख्या हैं-
(i) 3
(ii) 4
(iii) 5
(iv) 6
उत्तर – (iv) 6
प्रश्न 2. – [Cr (H2O)4Cl2]+ आयन में Cr की संयोजकता होती हैं-
(i) 3
(ii) 1
(iii) 6
(iv) 5
उत्तर – (iii) 6
प्रश्न 3. – [ Co(NH3)5Cl] Cl2 में Co की ऑक्सीकरण अवस्था है-
(i) +1
(ii) +2
(iii) +3
(iv +4
उत्तर – (iii) +3
प्रश्न 4. [Cu (CN)4]3- आयन में Cu की ऑक्सीकरण संख्या है-
(i) +2
(ii) +3
(iii) +1
(iv) -7
उत्तर – (iii) +1
प्रश्न 5.- निम्नलिखित में से कौन – सा आयन उपसहसंयोजन यौगिक नही बनाता हैं?
(i) Na+
(ii) Cr2+
(iii) Co2+
(iv) Cr3+
उत्तर – (i) Na+
प्रश्न 6.- कौन – सा धनायन अमोनिया के साथ ऐमीन संकुल नहीं बनाता हैं?
(i) Ag+
(ii) Al3+
(iii)Cd2+
(iv) Cu2+
उत्तर – (ii) Al3+
प्रश्न 7. निम्नलिखित वर्ग समतली यौगिकों में से कौन – सा समपक्ष एवं विपक्ष समावयवी रूप में विद्यमान होता हैं?
(i) Ma4
(ii) Ma3b
(iii) Ma2b2
(iv) Mabcd
उत्तर – Ma2b2
प्रश्न 8.- निम्नलिखित में से रंगहीन संकुल आयन है-
(i) [ Cu(NH3)4]2+
(ii) [Zn(NH3)4]2+
(iii) [Fe( H2O6]3+
(iv) [Fe(CN)6]3+
उत्तर – [Zn(NH3)4]2+
प्रश्न 9. जटिल यौगिक (Fe(H2O)5NO]SO4 में Fe के अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या हैं-
(i) 2
(ii) 4
(iii) 3
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (i) 2
अतिलघु उत्तरीय
प्रश्न – 1. लिगेण्ड क्या है? दो उदाहरण भी दीजिए।
लिगेण्ड क्या हैं?
उत्तर – वह आण्विक अथवा आयनिक स्पीशीज जो संकर यौगिक में केन्द्रीय धातु परमाणु अथवा आयन से स्थायी रूप से जुड़ी होती है, लिगेण्ड कहलाती है।
उदाहरणार्थ – K4[Fe(CN)6] में CN– आयन लिगेण्ड है क्योकि यह संकर में केन्द्रीय Fe2+ आयन से सीधे जुड़ा है। [Cu(NH3)4)2+ एक अन्य संकर आयन है जिसमें Cu2+ आयन चार NH3 लिगेण्ड से जुड़ा हुआ हैं।
प्रश्न- 2. उपसहसंयोगिकों में ध्रुवण समावयवता को उदाहरण द्वारा समझाइए।
उत्तर – ऐसे यौगिक जिनके भौतिक व रासायनिक गुण समान होते है परन्तु जिनका व्यवहार ध्रुवित प्रकाश के प्रति भिन्न होता है प्रकाशिक समावयवी कहलाते हैं तथा इस घटना को प्रकाशिक समावयवता कहते हैं। समावयवी जो ध्रुवित प्रकाश के तल को दायी ओर ( घड़ी की दिशा ) में घुमाते है, दक्षिण ध्रुवण घूर्णक या d- रूप तथा जो ध्रुवित प्रकाश के तल को बायीं ओर ( घड़ी की दिशा के विपरीत) दिशा में घुमाते है, बाएँ या वाम ध्रुवण घूर्णक या l – रूप कहलाते हैं।
प्रश्न 3.– उपसहसंयोजन यौगिकों में केन्द्रीय परमाणु तथा उपसहसंयोजन संख्य़ा को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – उपसहसंयोजन यौगिकों में केन्द्रीय परमाणु – वे धातु परमाणु या आयन जो परमाणुओं अथवा परमाणुओं के समूह ( लिगेण्ड) द्वारा स्थायी रूप से हुड़े होते हैं केन्द्रीय परमाणु अथवा आयन कहलाते हैं।
उदाहरणार्थ – K4 [Fe(CN)6 ] में Fe2+ केन्द्रीय परमाणु हैं।
प्रश्न-4. – प्रत्येक के दो – दो उदाहरण देते हुए द्विव लवण तथा संकुल यौगिकों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – द्विक – लवण – वे यौगिक जो विलयन में अपनी पहचान खो देते हैं अर्थात जो विलयन में सरल आयनों में विभक्त हो जाते है, द्विक – लवण कहलाते हैं।
जैसे- पोटाश ऐलम [K2SO4 .Al2(SO4)3 . 24H2O] यह पानी में घोलने पर K+, SO42- , Al3+
आयनों में विभक्त हो जाती है। अतः यह एक द्विक- लवण हैं।
संकुल यौगिक या उपसहसंयोजक यौगिक –
वे यौगिक, जो विलयन में अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं अर्थात जलीय विलयन में ये साधारण आयनों में विभक्त नही होते है, संकुल आयन या जटिल आयन कहलाते हैं। जैसे- पोटैशियम फेरोसायनाइड, K4[Fe(CN)6], जलीय आयन और संकुल या उपसहसंयोजक यौगिक है।
प्रश्न- 5- VIT sk आधार पर [Fe F6]3- संकुल आयन की संरचना एवं चुम्बकीय प्रकृति बताइए।
उत्तर – sp3d2 प्रकार का संकरण, अष्टफलकीय संरचना, अनुचुम्बकीय प्रकृति।
प्रश्न-6. प्रभावी परमाणु क्रमांक क्या है? उदाहरण द्वारा समझाइए।
उत्तर-. प्रभावी परमाणु क्रमांक = परमाणु क्रमांक + ग्रहण किये गये इलेक्ट्रॉनों की संख्या – त्याग किए गए इलेक्ट्रॉनों की संख्या।
प्रश्न- 7. उपसहसंयोजन संख्या को परिभाषित कीजिए।
उत्तर- संकुल यौगिकों में केन्द्रीय धातु के द्वारा लिगेण्ड के साथ बनाए गए उपसहसंयोजक आबन्धों की संख्या धातु की उपसहसंयोजन संख्या कहलाती हैं।
प्रश्न- 8. संकर आयन को परिभाषित कीजए।
उत्तर – उदासीन अणुओं या आयनों के केन्द्रिय धातु परमाणु से उपसहसंयोजन आबन्ध द्वारा आबन्धित होने से प्राप्त स्पीशीज पर यदि धन या ऋणावेश उपस्थित होता हो तो ऐसी स्पीशीज को संकर आयन कहते हैं।
प्रश्न – 9. FeSO4 विलयन तथा (NH4)2SO4 विलयन का 1 अनुपात 1 मोलर अनुपात में मिश्रण Fe2+ आयनों का परीक्षण देता है, परन्तु CuSO4 तथा जलीय अमोनिया ( NH3) का 1 अनुपाते 4 मोलर अनुपात में मिश्रण Cu2+ आयनों का परीक्षण नहीं देता हैं। क्यों ?
उत्तर – FeSO4 (NH4)2SO4 में मिलाने पर द्विकलवण का निर्माण होता है जो पूर्णतः आयनों में विघटित हो जाता है।
FeSO4 + 6H2O + (NH4)2SO4 – FeSO4 (NH4)2SO4.6H2O
द्विकलवण का निर्माण विलयन में Fe2+ आयन की उपस्थिति को दर्शाता है। जब CuSO4 को (NH4)2SO4 में मिलाया जाता है तो एक जटिल यौगिक का निर्माण होता हैं। जो पूर्णतः आयनों में विघटित नहीं होता है। विघटित न होकर जटिल यौगिक जटिल आयन का निर्माण करता है, जैसे कि [Cu(NH)3)4]2+
प्रश्न-10. उपसहसंयोजन यौगिकों में संरचनात्मक समावयवता कितने प्रकार की होती हैं? प्रत्येक समावयवों के रासायनिक सूत्र लिखिए।
उत्तर- उपसहसंयोजन यौगिकों में संरचनात्मक समावयवता निम्न चार प्रकार की होती हैं-
1. आयनन समावयवता
2. जलसंयोजन समावयवता
3.उपसहसंयोजन समावयवता
4.बन्धनी समावयवता
प्रश्न – 11. एकदन्तुर,द्विदन्तुर तथा उभयदन्तुर लिगेण्ड से क्या तात्पर्य है? प्रत्येक के दो उदाहरण दीजिए।
या
एकदन्ती एवं द्विदन्ती लिगेण्ड की परिभाषा एवं उदाहरण दीजिए।
उत्तर – लिगेण्ड का एक परमाणु दाता परमाणु होता है जो केन्द्रीय धातु आयन को एक एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म दान करके उपसहसंयोजक आबन्ध है, जैसे – Cl–, H2O या NH3 तो लिगेण्ड एकदन्तुर कहलाता है। जब लिगेण्ड दो दाता परमाणुओं द्वारा परिबद्ध होता हैं, जैसे – H2NCH2CH2NH ( एथेन – 1, 2- डाइऐमीन) अथवा C2O2- तो ऐसा लिगेण्ड द्विदन्तर कहलाता है।
वह लिगेण्ड जो दो भिन्न परमाणुओं द्वारा जुड़ सकता है, उसे उभयदन्ती संलग्नी या उभयदन्तुर लिगेण्ड कहते हैं। ऐसे लिगेण्ड के उदाहरण हैं- NO2– तथा SCN– आयन NO2– आयन केन्द्रीय धातु परमाणु/ आयन से या तो नइट्रोजन द्वारा अथवा ऑक्सीजन द्वारा अथवा ऑक्सीजन द्वारा संयोजित हो सकता है। उसी प्रकार SCN– आयन सल्फर अथवा इनट्रोजन परमाणु द्वारा संयोजित हो सकता हैं।
प्रश्न – 12. उपसहसंयोजन यौगिकों के चुम्बकीय गुणों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर – जिन धातु आयनों के d उपकोश में तीन या तीन से कम इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं उनके द्वारा बनें संकर यौगिकों तथा धातु आयनों का चुम्बकीय व्यवहार समान होता है। जैसे- Ti3+(3d1), V3+(3d2) तथा Cr3+ (3d3) आयन। जिन धातु आयनों के d उपकोश में चार या उससे अधिक इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं।
ये मुक्त आयनों एवं के d उपकोश में चार या उससे अधिक इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं ये मुक्त आयनों एवं बनने वाले संकर यौगिकों का चुम्बकीय व्यवहार समान तथा असमान दोनों हो सकते हैं, जैसे- Mn3+(3d4), Cr2+(3d4), Mn2+(3d5) Fe3+(3d5) में अष्टफलकीय संकरण हेतु 3d कक्षकों के रिक्त युग्म केवल उस समय उपलब्ध होते हैं।
जब इलेक्ट्रॉन हुण्ड के नियम के विपरीत युग्मित होते हैं। d6 स्पीशीज के लिए चुम्बकीय आँकड़ों से ज्ञात होता है कि इनमें अधिकतर चक्रण युग्म ( निम्न चक्रण ) पाया जाता है, जबकि d4 तथा d5 समूहों के लिए जटिलता पायी जाती है, जैसे – [Mn(CN)6]3- , दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण चुम्बकीय आघूर्ण प्रदर्शित करता है तथा [CoF6]3- , चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों का चुम्बकीय आघूर्ण प्रदर्शित करता हैं।
Co(C2O4)3]3- प्रतिचुम्बकीय व्यवहार प्रदर्शित करता हैं। संयोजकता आबन्ध सिद्धांत के अनुसार यह विभेदता आन्तरिक कक्षक तथा बाह्म कक्षक संकर यौगिकों के निर्माण द्वारा समझायी जा सकती हैं।
[Co(C2O4)3]3- तथा [ Mn(CN)6]-2 आन्तरिक कक्षक संकर है तथा d2sp3 संकरण के द्वारा बनते हैं। [ Mn(CN)6]-2 अनुचुम्बकीय है, जबकि [Co(C2O4)3]3- प्रतिचुम्बकीय है। दूसरी तरफ [CoF6]3- एक बाह्म कक्षक संकर है, जोकि sp3d2 संकरण के द्वारा बनता है। यह प्रकृति में अनुचुम्बकीय है तथा इसका चुम्बकीय आघूर्ण चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के संगत हैं।
प्रश्न – 13. वर्नर सिद्धान्त की अभिधारणाएँ लिखिए।
या
उपसहसंयोजक यौगिकों के वर्नर सिद्धान्त की अभिधारणाएँ लिखिए।
उत्तर – वर्नर सिद्धान्त की अभिधारणाएँ निम्नलिखित हैं-
- उपसहसंयोजन यौगिकों में केन्द्रीय धातु ( परमाणु या आयन ) दो प्रकार की संयोजकताएँ प्रदर्शित करता है- (क) प्राथमिक संयोजकता और (ख) द्वितीयक संयोजकता।
- धातु में अपनी प्राथमिक संयोजकताओं और द्वितीयक संयोजकताओँ अर्थात दोनों प्रकार की संयोजकताएँ ऋणावेशित परमाणुओं या समूहों द्वारा सन्तुष्ट होती हैं। द्वितीयक संयोजकताएँ विद्युत उदासीन अणुओं या विद्युत आवेशित परमाणुओं या समूहों द्वारा सन्तुष्ट होती है।
- प्राथमिक संयोजकताएँ आयननीय और द्वितीयक संयोजकताओं अनायनीय होती है।
- धातु द्वारा प्रदर्शित द्वितीयक संयोजकताओँ की संख्या साधारणतः एक निश्चित संख्य़ा होती है। किसी धातु द्वारा प्रदर्शित द्वितीयक संयोजकताओं की संख्या उसकी उपसहसंयोजन संख्या या समन्वय संख्या कहलाती है। केन्द्रीय धातु से सीधे परिबद्ध परमाणुओं या समूहों की संख्य़ा अर्थात उपसहसंयोजन संख्या होती हैं। धातुओं की उपसहसंयोजन संख्याएँ प्रायः 2 , 4 या 6 होती है। 8, 10 या 12 की उपसहसंयोजन संख्याएँ दुर्लभ होती हैं।
- धातु की द्वितीय संयोजकताएँ धातु की चारों ओर त्रिविम आकाश में एक निश्चित ज्यामितीय ढंग से व्यवस्थित होती हैं।
प्रश्न -14. संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर – यह सिद्धान्त लिनियस पॉलिंग ने सन् 1931 में दिया था। यह संकुल यौगिकों में केन्द्रीय धातु आयन की सामान्य अवस्था में इलेक्ट्रॉनिक संरचना, आबन्ध ज्यामिति तथा चुम्बकीय गुणों के विषय में विषय में जानकारी देता है। संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त की मुख्य अभिधारणएँ निम्नलिखित हैं-
- सर्वप्रथम केन्द्रीय धातु परमाणु अपनी ऑक्सीकरण संख्या के अनुरूप इलेक्ट्रॉन त्यागकर ( शून्य ऑक्सीकरण संख्या को छोड़कर ) धनायन बनाता हैं। संकुल यौगिकों में केन्द्रीय धात परमाणु या आयन के पास उचित लिगेण्डों के साथ उपसहसंयोजक आबन्ध बनाने के लिए आवश्यकतानुसार रिक्त कक्षक होते है। ये रिक्त कक्षक केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन की समन्वय ( उपसहसंयोजन) संख्या के बराबर होते हैं।
- केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन के ये रिक्त कक्षक, ( s, p /d) संकरित होकर समान संख्या में समान ऊर्जा के नए संकरित कक्षक देते है। इन संकरित कक्षकों की ज्यामिति निश्चित होती हैं, जो समतली वर्गाकार, चतुष्फलकीय, अष्टफलकीय आदि हो सकती है। ये रिक्त संकरित कक्षक, लिगेण्ड के दाता परमाणु के इलेक्ट्रॉन, युग्म कक्षकों से अतिव्यापन करके, उपसहसंयोजन आबन्ध बनाते हैं। इस प्रकार केन्द्रीय धातु आयन संकरित कक्षक और लिगेण्ड के मध्य बनने से बने संकुल अणु या आयन की एक निश्चित ज्यामिति होती हैं।
- केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन क संकरण में भाग लेने वाले d- कक्षक अन्दर के अन्दर के अर्थात ( n – 1)d या बाह्यतम nd कक्षक हो सकते है। उदाहरणार्थ – अष्टफलकीय संकरण में भाग लेने वाले कक्षक दे ( n – 1)d, एक ns तथा तीन np(d2sp3 के रूप में) अथवा एक ns,तीन np तथा दो nd(sp3d2 के रूप में) हो सकते है।
- अन्दर वाले d- कक्षकों का प्रयोग करने वाले संकुल यौगिकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनो की संख्या कम होती है। इन्हें आन्तरिक कक्षक निम्न चक्रण या चक्रण युग्मित जटिल यौगिक (संकुल) कहते है। बाह्मतम d- कक्षकों का प्रयोग करने वाले संकुल यौगिकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होती है। इन्हें बाह्मतम कक्षक, उच्च चक्रण या चक्रण मुक्त संकुल यौगिक कहते हैं।
- प्रत्येक लिगेण्ड के पास कम से कम एक कक्षक होता है जिसमें एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होता जो धातु के रिक्त संकरित कक्षक के साथ अतिव्यापन करके धातु – लिगेण्ड उपसहसंयोजन आबन्ध बनाता हैं।
- लिगेण्ड के केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन के निकट जाने पर केन्द्रीय धातु परमाणु या परमाणु या आयन के रिक्त संकरित कक्षक लिगेण्ड के भरे हुए कक्षको के साथ अतिव्यापन करके लिगेण्ड व धातु के बीच उपसहसंयोजन आबन्ध बनाते है। इन आबन्धों की संख्या केन्द्रेय धातु परमाणु या आयन के द्वारा उपलब्ध रिक्त कक्षकों की संख्या पर निर्भर करती हैं।
- केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन के अन्दर वाले कक्षकों में उपस्थित इलेक्ट्रॉन आबन्ध बनाने में भाग नही लेते ।
आज का यह पोस्ट आपको कैसा लगा कमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा आने वाले समय में आपकी परीक्षा के लिए और अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न में आपके लिए इस वेबसाइट पर लाता रहूंगा समय देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद मिलते हैं अगले पोस्ट में।
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